panch-peer Zaherveer Gogaji, a Nath Jogi,was a Chayal Chauhan, who is venerated as a protector of peasants from snakes.
पढ़िए वीर गोगा जी चौहान के बारे में जिनकी जानकारी शायद राजस्थान
के बाहर राजपूतों में ही नहीं है ,किसी भी हिंदूवादी और आरएसएस की कहानियों में ये नहीं मिलेंगे।
जब महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था, तब पश्चिमी राजस्थान में गोगा जी चौहान ने ही गजनी का रास्ता रोका था, घमासान युद्ध हुआ | गोगा ने अपने सभी पुत्रों, भतीजों, भांजों व अनेक रिश्तेदारों सहित जन्म भूमि और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया |
विद्वानों व इतिहासकारों दशरथ शर्मा, देवी सिंह मुन्डावा जैसे इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है।
गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी (हरियाणा) तक था।
गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे जाहरवीर गोगा जी के नाम से भी जाना जाता है । राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है । यहां भादवशुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है । इन्हे सभी जाती धर्मो के लोग पूजते है|
वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिस्य थे। चौहान वीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान, जो राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है। जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान सनातन एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी सनातन, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।
जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के अंतर्गत आता है।
गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत माँगते हैं।
आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। उत्तर प्रदेश में इन्हें जहर पीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं
गोगा नवमी पर कडाई, पुआ, पुडी, खीर बनाई जाती है, कुम्हारो के धर से मिटटी का घोडा लाया जाता है ।
जिस पर गोगाजी विराजमान रहते है, उनकी पूजा कि जाती है, भोग लगाया जाता है, राखी चढाई जाती है ।
गोगा नवमी की हार्दिक बधाई शुभकामनायें।
जय जुझार वीर गोगा जी चौहान (जाहरवीर) जी की
गोगा नवमी पर गोगा जी महाराज को शत शत नमन।