Pushpendra Rana
“पृथ्वीराज रासो में वर्णित संयोगिता प्रकरण को कतिपय विद्वान किसी नारी का वरण न मान संयुक्ता भूमि (अर्थात वह भूभाग जो या तो दो शासनों के मध्य संयुक्त भूमि हो अथवा दो राज्यों से जुड़ी ऐसी भूमि हो जो प्रत्यक्षतः किसी राज्य का भूभाग न हो किन्तु दोनों उसे अपनी भूमि मानते हों) के लिए हुआ संघर्ष मानते हैं।”
यह माना जाता है कि गहड़वाल वंश का राज आज के सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश और बिहार पर था लेकिन गहड़वाल वंश के जितने भी अभिलेख मिले हैं उनसे पता चलता है कि इस वंश का राज पश्चिम में इटावा तक ही था। आश्चर्यजनक रूप से पश्चिम उत्तर प्रदेश के बदायूं, बरेली, एटा, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद में गहड़वाल वंश का कोई भी अभिलेख या सिक्का नही मिलता, अपितु कन्नौज से बदायूं जाकर शासन करने वाले राठौड़ो के जरूर इस क्षेत्र में अनेक अभिलेख मिलते हैं। अनेक ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह भी प्रमाणित होता है कि गहड़वालों ने कन्नौज को जीता जरूर था लेकिन वो शासन बनारस से ही करते थे।
दूसरी तरफ चौहानो का राज कोल(वर्तमान अलीगढ़) तक था। विद्ववानों के अनुसार चौहान और गहड़वाल राज्य के मध्य जो एटा, बदायूं, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद का क्षेत्र है यह बदायूं के राठौड़ो के अधीन एक छोटे राज्य का हिस्सा था जो दोनों विशाल राज्यो के बीच buffer state का काम करता था, इसलिये इस क्षेत्र को संयुक्ता प्रदेश कहते थे। संयुक्ता से ही संयोगिता हुआ। इस राठौड़ी राज्य पर प्रभाव के लिये दोनों ही बड़े राज्य संघर्षरत रहते थे।
अधिकतर समय यह राज्य गहड़वालों की छत्रछाया में रहा जो कि राष्ट्रकूट नरेश मदनपाल को गहड़वाल नरेश द्वारा तुर्को की कैद से मुक्त कराने की किवदंती द्वारा भी इंगित होता है। राष्ट्रकूटों के अभिलेखों के अनुसार मदनपाल ने आखिरी बार हारने से पहले तुर्को से अनेक युद्ध लड़ कर जीते थे, जबकि इनमे गहड़वालों का कोई जिक्र नही है। इस से साबित होता है कि बदायूं के राष्ट्रकूट स्वतंत्र शासक थे, भले ही इन्हें कमजोर राज्य होने के कारण गहड़वालों की छत्रछाया में रहना स्वीकार करना पड़ता हो।
दूसरी तरफ चौहान भी इस क्षेत्र पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रहे थे। यह संभावना है कि राठौड़ो ने गहड़वालों के अतिशय प्रभाव से मुक्ति पाने के लिये खुद चौहानो की महत्वकांक्षाओं को बढ़ावा दिया हो। इसी कारण गहड़वाल और चौहानों में संयुक्ता (संयोगिता) प्रदेश के लिये संघर्ष छिड़ा जिसमे इस क्षेत्र में कई युद्ध लड़े गए। बल्कि इस समस्या के समाधान के लिए पृथ्वीराज ने इस संयुक्ता के हरण(जीतने) की योजना बनायी जिसके अनुसार जगह जगह पृथ्वीराज के सेनापतियों ने जयचंद की सेना से युद्ध किये। एटा जिले के मलावन, फिरोजाबाद जिले के पैंठत तथा अलीगढ़ जिले के गंगीरी में स्थानीय देव के रूप में पूजे जानेवाले मल्ल, जखई व मैकासुर को अनुश्रुतियां पृथ्वीराज के उन सरदारों के रूप में स्मरण करती हैं जो इस संयुक्ता प्रकरण में इन स्थलों पर लड़े गए युद्धों में वीरगति को प्राप्त हुए। अंतिम युद्ध सोरों में लड़ा गया जिसमें चौहानो की हार हुई।
पृथ्वीराज रासो में इसको अलंकारिक स्वरूप प्रदान कर इन युद्धों को संयोगिता नाम की राजकुमारी को हरण करके ले जाते पृथ्वीराज चौहान के सेनापतियों द्वारा जयचंद की पीछा करती फौज से जगह जगह लड़े गए युद्ध बता दिया गया। गौरतलब है कि संयोगिता नाम के किसी भी पात्र का वर्णन किसी भी ऐतिहासिक ग्रंथ या अभिलेख में नही है सिवाय 4 सदी बाद लिखे गए पृथ्वीराज रासो के जबकि पृथ्वीराज चौहान की पत्नी गुजरात से थी।