वाराणसी के रघुवंशी राजपूत-
by Pushpendra Rana
वाराणसी पर प्राचीन काल से रघुवंशी राजपुत्रो का राज रहा है। बौद्ध, जैन और ब्राह्मण ग्रंथो में वाराणसी के राजा हरिश्चन्द्र और अन्य रघुवंशी राजाओं का जिक्र आता है। बाद में यहां कई सदी सोमवंशी राजपुत्रो का राज रहा जिनके वंशज आज सोमवंशी, गहरवार, चंदेल, बुंदेला आदि राजपुत्र वंश हैं। इसके बाद सदियों तक मुगलो और भूमिहारो का राज रहा।
लेकिन हजारो साल तक शासन से दूर होने के बावजूद आज भी वाराणसी और उसके आसपास रघुवंशी राजपूतो की बड़ी आबादी है। इनमे धरहरा और औड़िहार जैसे बाहुबलियों के लिए मशहूर पूर्वांचल के सबसे दबंग गांव हैं। औड़िहार के लिए माना जाता है कि यहां पूर्वांचल बिहार के समस्त क्षत्रियो ने मिलकर हूणों को हराया तभी इसका नाम हूणहार से होते औड़िहार पड़ा। आज भी यहां कई किमी में बिखरे पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा striking वाराणसी शहर में रहने वाली रघुवंशी राजपुत्रो की आबादी है। आमतौर पर पुराने शहरों में राजपूतो की पुरानी बसापत नही मिलती। लेकिन हजारो साल से वाराणसी शहर में रघुवंशी राजपूत रहते आ रहे हैं और बेहद प्रभावशाली रहे हैं। वाराणसी देश का सबसे प्राचीन शहर है, न्यूनतम 3 हजार साल पुराना और रघुवंशी राजपूत इस शहर की शुरुआत से ही वाराणसी में रहते आ रहे हैं। इस तरह ये किसी एक मानवीय बस्ती में लगातार 3 हजार साल या उससे ज्यादा समय तक वास करने वाला भारत या दुनिया का सबसे पुराना समुदाय हो सकता है।
वाराणसी शहर के ये रघुवंशी राजपूत वहां मौजूद काशी विश्वनाथ मंदिर की रक्षा की प्रथम पंक्ति रहे हैं। इसके दो उदाहरण वाराणसी गैज़ेटर में मिलते हैं जब 1809 और 1857 में मुस्लिम आबादी ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला किया। 1809 में शहर की मुस्लिम आबादी विशेषकर जुलाहों ने मंदिर पर हमला किया तो इसके बदले में शहर के राजपूतो ने मोर्चा संभाला जिसमे 80 मुसलमान मारे गए। अगले दिन मौका देखकर जुलाहों ने मंदिर परिसर में गाय काट दी जिससे आग बबूला होकर राजपूतो ने कई दिन तक जुलाहा मोहल्ले पर हमला करते हुए उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया। इस दौरान औरंगजेबी मस्जिद सहित 50 से ऊपर मस्जिदों को छतिग्रस्त किया गया।
1857 में भी मुस्लिम आबादी ने फिर हमला किया तब भी रघुवंशी राजपूतो ने ही इनका मुकाबला किया।
अवध में अयोध्या से लेकर वाराणसी के बीच मे रघुवंशी राजपूतो की आबादी मिलती हैं जो मूल रघुवंशी हैं और पौराणिक काल से लेकर आज तक अवध-पुर्वांचल में रहते आ रहे हैं। मूल रघुवंशी चंदौली, बांदा, कन्नौज बघेलखंड और बिहार में भी बहुत हैं। बाकी सभी राम को अपना पूर्वज मानने वाले वंश इनकी शाखाएं हैं।