पद्मश्री डॉ. लाल जी सिंह

तस्वीर में दिख रहे भारत में डीएनए फिंगरप्रिंट के जनक पद्मश्री सम्मानित डॉ. लाल जी सिंह हैं।

उत्तरप्रदेश के जौनपुर के कलवारी गांव के निवासी डॉ. लाल सिंह के पिता एक साधारण किसान थे। लालजी सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से MSc करने के बाद कोशिका आनुवांशिकी में पीएचडी की। खास बात यह है कि उन्हें बीएचयू सहित छह विश्वविद्यालयों ने डीएससी की उपाधि दी। वह हैदराबाद के ‘कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र’ के संस्थापक व निदेशक रहे। बाद में वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने।

डॉक्टर लालजी सिंह ने भारत में पहली बार क्राइम इन्वेस्टिगेशन के लिए साल 1988 में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का इस्तेमाल किया. पितृत्व से जुड़े इस मामले को सुलझाने के लिए साल 1991 में, सिंह ने पहला डीएनए फिंगरप्रिंटिंग आधारित सबूत भारतीय न्यायालय में पेश किया. इसके बाद से कई मामलों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया।

उन्होंने अपने गृह जनपद में जिनोम फाउंडेशन नाम से संस्था भी खोली, जहां शोध के आधार पर खासकर आदिवासी जनजातियों की पीढ़ियों पर अध्ययन किया जाता है। लालजी सिंह ने शुरुआत में जब 62 पन्नों की थीसिस लिखी, जिसे उस समय जर्मनी के मशहूर जर्नल ने छापा तो विज्ञान की दुनिया में तहलका मच गया। कलकत्ता यूनिवर्सिटी के रिसर्च यूनिट (जूलॉजी) जेनेटिक में 1971-1974 तक रिसर्च करने का मौका मिला। फिर 1974 में कॉमनवेल्थ फेलोशिप मिली तो यूनाइटेड किंगडम गए। लेकिन विदेशी चकाचौंध उन्हें रास नहीं आई क्योंकि वह माटी से जुड़े आदमी थे।

दुर्भाग्य से उनका सन 2017 में हार्ट अटैक से निधन हो गया। आपको बता दें कि इस महान पुरुष की जौनपुर में ही कोई प्रतिमा अथवा नामकरण नहीं है।

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