ट्वीटर @KshatriyaItihas से लिये गए लेख का हिंदी अनुवाद।
मधुबनी से लेकर नागौर तक लेफ्ट राइट सेन्टर सब जगह आप लोग एक राज्य प्रायोजित, बहुसंख्यकों की हिंसा का शिकार हैं। दिन दहाड़े राज्य के संरक्षण में राजपूतों का नरसंहार होता है और नकारा न्याय व्यवस्था मूक दर्शक या सहायक बनी रहती है। एक तरफ जहां ये डींगे हाँकी जाती हैं कि सदियों से सामंतवाद की बेड़ियों में जकड़ा भारत आज उनसे आजाद होकर तरक्की की नई उड़ान भर रहा है वहीं दूसरी ओर ये समानता का दम्भ भरने वाले आपसे दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं।
रोज आपकी औरतों के सम्मान को मटियामेट किया जाता है, आपके बलिदानों की खिल्लियां उड़ाई जाती हैं, रोज आपको आपके पूर्वजों के किन्हीं काल्पनिक अपराधों का उल्हाना दिया जाता है, आपको हिन्दू धर्म का गद्दार घोषित किया जाता है, आपके जौहर-शाकों की परंपराओं पर औरतों पर अत्याचार , पितृसत्तावाद आदि की तोहमतें लगाई जाती हैं।
कभी आपने खुद से पूछा है कि इन सबके बीच आपके आत्म सम्मान को क्या हो गया है ? कभी ख्याल किया है कि आपकी आत्मा तक जिसकी जकड़ में है वो अव्वल दर्जे की भीरुता जिसमे आप पर हुए अत्याचार का बदला लेने की सोच तक से आपकी रीढ़ की हड्डी में सनसनाहट फैल जाती है, उसका कारण क्या है ? वीरता और प्रतिशोध की वजह से जाने जाने वाले राजपूतों के मुँह से आज किसी भी अत्याचार पर गूंगों की तरह शब्द तक नही निकलते।
सोचो, सोचो ऐसा क्या हुआ कि तुम निर्वीर्य से इतने खोखले हो गए हो।
पहला जवाब है तुम्हारा खुद का पिछड़ापन, दीवार पर लिखी भविष्य की चेतावनी को नजरअंदाज कर देने की प्रवृति, बदलते सत्ता समीकरणों और बदलते समय को स्वीकार न करने की और खुद को कुछ सीख कर बदलते समय के साथ न बदलने की मूर्खतापूर्ण हठधर्मिता, राजनैतिक दलालों को समाज में सबसे ऊंचे पदों पर बैठाने का सिरफिरापन, तुम्हारी गरीबी जिसने बचे खुचे सम्मान की भी धज्जियां उड़वा दीं, तुम्हारी आपसी फूट और नामसमझी जिसका फायदा उठाया उन अवसरवादियों ने जो तुम्हे समाप्त कर देने की फिराक में घात लगाये बैठे थे और इन सबके ऊपर, ताबूत की आखिरी कील की तरह, तुम्हारा बेकार का नपुंसक आदर्शवाद ।
दूसरा जवाब मिलेगा एक सोचे समझे मनोवैज्ञानिक युद्ध में जिसपे आपका ध्यान जाता ही नही है। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हर वो दुष्प्रचार फैलाया गया जो आपके समाज को इस देश और समाज का अपराधी घोषित करे । इसके कई तरीके ईजाद किये गए-
-एक तो बहुत ही सोच समझ के इस देश में ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करवाया गया जो ये कहे कि इस देश में जो भी गलत हुआ वो आपके पूर्वजों की वजह से हुआ, आपकी पीढियां उसको पढ़ कर एक अपराध बोध में जियें। आपके अबोध बच्चें पढ़ें कि किस तरह उनके पूर्वज बलात्कारी,अत्याचारी , निरंकुश तानाशाह थे जिनका काम ही आम जनता का शोषण करना था, उनके मैन में बैठाया गया है कि वो उन देश और धर्म के अपराधियों की संताने हैं। ये लेख पढ़ने वाली आज की दो पीढियां अपने मन में अभी विचार करके देख लें क्या उन्होंने पढ़ते समय इस प्रकार के एक अदृश्य अपराध बोध को महसूस नही किया था?क्या वो आज तक आपके मन के किसी कोने में नही बैठा है? बिल्कुल मिलेगा क्योंकि वो आपके मन में बहुत कच्ची उम्र में बैठाया गया था।
-दूसरा इसी कड़ी में आपकी हर एक पहचान,आपके जीवन जीने के हर पक्ष को निशाना बनाया गया। आपसे जुड़ी हर छोटी से छोटी चीज़ को या तो कानूनन अवैध घोषित किया गया या उनको हिकारत की नजर से देखा गया या उनको समाज में भेदभाव के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया गया फिर चाहे वो आपकी परंपराएं हों , रीति रिवाज हों, यहां तक आपके पहनावे और मूंछों तक को नही छोड़ा गया। वो भी अत्याचार का प्रतीक हो गयीं।
तो कुल मिला के उद्देश्य ये रहा कि आने वाली पीढ़ियों में ऐसे दब्बू, मंद बुद्धि, खुद ही खुद को अपराधी से मानने वाले राजपूत पैदा हों जो सपने में भी अपने प्रति हुए गलत को गलत कहने की हिम्मत न कर पाएं और आज वही पीढ़ी हम देख रहे हैं जो अपने साथ हुए अन्याय और भेदभाव को बिना किसी शिकायत के चुपचाप सह रही है।
इस देश में सिर्फ आप ही वो समाज हो जो मूर्खता की हदें पर कर ये माने बैठा है कि इस देश में वास्तव में सब कुछ लोकतांत्रिक तौर से होता है जिसमें सबको न्याय के अवसर प्राप्त हैं, आप ही वो एकमात्र समाज हैं जिसे इस देश के राजनैतिक और सामाजिक आधारों को पवित्रता की हद तक देखने की आदत है जिनपर सवाल खड़ा करना आपके लिए पाप है। आप खुद के प्रति भेदभाव को देख कर भी व्यवस्था पर सवाल नही उठाना चाहते। केवल आपका ही हिंदुत्व खतरे में आता है, केवल आप ही हो जो इस देश में सबसे अधिक अलोकतांत्रिक व्यवहार झेलने के बावजूद भी लोकतंत्र की जमीनी हकीकतों से अनभिज्ञ हो मुगालते में बैठे हो। केवल आप ही जो इस देश के सत्ता के अखाड़ों में मौल- भाव नही बल्कि सहृदयता से विश्वास करे बैठे हो। केवल आप ही ऐसे राजनेता चुन के भेज सकते हो जो आगे समाज के हितों की सौदेबाजी करके आ जाएं और बिना किसी जवाबदेही के वापस आ कर आपके बीच सम्मान पा जाएं और वापस चुन लिए जाएं,केवल आप ही इतने भोले या मूर्ख हो सकते हो कि समाज की अगली पीढ़ी का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ में दे दो जो जितना दहाड़ते हैं उसका एक कतरा भी करने की हिम्मत नही रखते।
सोचना शुरू कीजिए , सबसे ज्यादा जरूरत अभी इसी चीज़ की लग रही है।