ठीक है चलो इनकी खुशी के लिए मान लेते हैं कि सभी क्षत्रिय (ठाकुर भी इन्हीं के लिए इस्तेमाल होता है) बुरे हैं, अपराधी हैं, रेपिस्ट है।
मगर बॉलीवुड में ठाकुरवाद!! कुछ तथ्य:
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बॉलीवुड में क्षत्रिय ना के बराबर रहे है, इसलिए नहीं की ये अच्छे कलाकार नहीं हो सकते मगर इसलिए क्योंकि इनके साथ पक्षपात और जातिगत नफ़रत हमेशा से करते आय । तभी जो कुछ क्षत्रिय बॉलीवुड में रहे - साक्षी तंवर, विद्युत जामवाल, अरुणोदय सिंह बघेल वो सपोर्टिंग रोल के अलावा ज़्यादा बढ़ भी नहीं पाए, कुछ एकाद अपवाद को छोड़।
बॉलीवुड में producer से लेकर एक्टर तक प्रभुत्व रहा खत्री (कपूर, खन्ना, जोहर, चोपड़ा, मल्होत्रा, धवन) और अशरफ (ज़्यादातर सय्यिद और पठान) का। उनके बाद ब्राह्मण और जाटों का । -
यदि बॉलीवुड में ठाकुरवाद होता तो हर एक फिल्म में क्षत्रियों को सामंती वैभ्यचारी और शैतान दिखाकर प्रस्तुत नहीं किया जाता पीढ़ी दर पीढ़ी।
क्या ज़्यादातर क्षत्रिय सामंत है? नहीं। फिर भी एक सामंती पहचान हमारे ऊपर थोप दी गई। किसने थोपी? वही एलीट लोगों ने, जिनकी जातियों का बॉलीवुड में प्रभुत्व रहा है।
क्या ज़मीनदार सिर्फ क्षत्रिय समाज से होते थे? नहीं। खत्री, सईद (जावेद अख्तर की जाति), पठान, ब्राह्मण, जाट सामंती भी हुआ करते थे, अंग्रेज़ों के समय से तो गुज्जर और अहीर मे भी ज़मीनदार होने लगे थे। मगर कितनी फिल्मों में इन्होने ज़मीनदार की जाति अपनी जाति बताई हो? तभी बताते है, जब इन्हें अच्छा ज़मीनदार दिखाना हो। यहां तक कि गुलामी, दंगल, लांटर्ण, पंचायत, आर्टिकल 15, स्वदेश इत्यादि हजारों फिल्में साक्षी है कि किसका महिमा मंडन होता है बॉलीवुड में।
तो जब यह महाशय कुछ अपवादों का ज़िक्र कर यहां भी “ठाकुरवाद” का परसेप्शन बनाना चाहते हैं, मगर बॉलीवुड के प्रत्यक्ष प्रमाणित खत्री, अशराफ, ब्राह्मण और जाट प्रभुत्व पर मौन रहते हैं — तो इनकी नीयत पर शक करना स्वाभाविक है।
चलिए इस दोगलेपन का कारण जानते है
- हाल में फिल्म आई थी आर्टिकल 15 , उसमे दलितों का saviour ब्राह्मण दिखाया है। अपराधी क्षत्रिय सामाज का पुलिस कर्मी है। पिक्चर बनाने वाले अनुभव सिन्हा , कायस्थ है, जो कि ब्राह्मण समान जाति है।
आर्टिकल 15 बदायूं रेप केस पर आधारित है, जिसमे सभी 7 अपराधी पुलिसकर्मी अहीर जाति से थे ( अहीर जाति यादव उपनाम लगाती है, मगर यादव नहीं है)। मुख्यमंत्री अखिलेश अहीर (अखिलेश यादव) के इशारे से केस को रफा दफा कर इन पुल्सकर्मियों को छोड़ दिया गया । फिर भी इस पूरे वाक्य में अनुभव सिन्हा,कायस्थ, क्षत्रिय को अपराधी दिखाते हैं जबकि कोई क्षत्रिय इस मामले से जुड़ा भी नहीं था।
इसलिए देखिएगा कि जाट गुज्जर अहीर अपराधियों की बात करने से बॉलीवुड हमेशा बचता रहता है, मगर जब महिमा मंडन करना हो तो जाटों का खुलकर महिमा मंडन करेगा क्योंकि बॉलीवुड में धर्मेंद्र के समय से जाट hegemony बनी है, जो आज भी कायम है।
आर्टिकल 15 के लेखक गौरव सोलंकी मेरट के जाट है (हालांकि,सोलंकी राजपूत वंश है) और उन्होंने तांडव भी लिखी जिसमें सैफ अली खान (पठान) एक तानाशाह क्षत्रिय की भूमिका में नज़र आए। अब यह जातिगत राजनीति नहीं है तो क्या है?
- मगर जब कभी किसी काबिल राजपूत पर पिक्चर बनती है, तो पूरा ध्यान रखा जाता है कि उसकी राजपूती पहचान छिपाई जाय। धोनी, राइफलमैन जसवंत रावत, एथलीट मिल्खा सिंह राठौड़, पर फिल्म बनती है तो पूरी कोशिश की जाती है उनकी जातिगत पहचान छिपाने की। मगर किसी अपराधी की राजपूत पहचान को रेखांकित किया जाता है।
अब भी यदि कोई बॉलीवुड में क्षत्रिय कलाकारों के करियर, उनकी marginalised position और बॉलीवुड में क्षत्रियों के चित्रण जानकर भी बॉलीवुड में “ठाकुरवाद” की complain करता है , मगर खत्री जाट अष्राफ ब्राह्मण प्रभुत्व पर मौन रहता है, तो वह सिर्फ उसकी जातिगत नफ़रत और कुंठा दिखाता है।
ऐसा क्यों है कि एक ओर ब्राह्मण, बनिया, खत्री, अश्राफ आपको टारगेट करते है और दूसरी ओर सामंती जातियों जैसे जाट अहीर गुज्जर का भी ये महिमा मंडन करती हैं। तो इसका उत्तर है : Shared Hegemony।
- रही बात मीडिया में ठाकुरवाद की, तो इन नफ़रती विशेषज्ञ से पूछना चाहूंगा कि : कुछ बड़े क्षत्रिय पत्रकारों के नाम बता दीजिए? कुछ ऐसे narrative making क्षत्रिय पत्रकारों के ही नाम बता दीजिए? नहीं तो यह भी बता दीजिए कि यदि मीडिया में ठाकुरवाद है, तो मीडिया में ठाकुर दिखते क्यों नहीं, तो मीडिया में क्षत्रियों को हर दूसरे लेख में हारा हुआ, कायर, रेपिस्ट, बुरा, अपराधी ही क्यों दिखाया जाता है – जाटों खत्रियो ब्राह्मणों जैसा महिमा मंडन क्यों नहीं होता क्षत्रियों का? क्यों हाथरस के बहाने सम्पूर्ण क्षत्रिय समाज को टारगेट कर करके लेख लिखे जाते हैं और क्यों बांका लिंचींग, मधुबनी नरसंहार, हरनावा हत्याकांड, निकिता तोमर हत्याकांड जहां क्षत्रिय विक्टिम है, उन्हें दबा दिया जाता है।
जहां एक ओर ब्राह्मण, बनिया, खत्री, आशराफ इस देश का शासक वर्ग है जो फिल्मों, साहित्य, पत्रकारिता, इतिहास लेखन के ज़रिए पॉलिसी मेकिंग करती है; वहीं जाट गुज्जर अहीर इनके लोकल सामंत है, क्षत्रप है जिनके कंधे पर चढ़कर ये सभी राज करते हैं। इसलिए ये कभी सामंती जाट गुज्जर अहीर द्वारा दलित शोषण पर बोलते नहीं, ये जहां इन जातियों के अपराधी हो वहां भी क्षत्रियों को जोड़ने की कोशिश करते हैं। क्षत्रियों को पंचिंग बैग बनाकर रखते हैं – नौकरियों उच्च शिक्षा में भेदभाव भी करते हैं और फिर इन्हीं संस्थानों में ठाकुरवाद की अफवाह भी फैलाते हैं — ताकि क्षत्रियों पर ही public outrage केंद्रित रहे और इनके Shared Hegemony से ध्यान भटकाया जाय।
किसी भी जाति के प्रति नफ़रत फैलाना तो ठीक, तुम तो झूठ तक फैलाते हो। खैर, इसलिए कहता हूं कि क्षत्रियों को अपने इतिहास और वर्तमान दोनों पर लिखना चाहिए नहीं तो ये आपकी असलियत बदलकर रख देंगे।